हिमाचल प्रदेश में अस्सी प्रतिशत दुर्घटनाएँ मानवीय त्रुटि के कारण , 15% खराब सड़कों के कारण और 5%तकनीकी कारण घटित होती है। निस्संदेह ड्राइविंग त्रुटियाँ हमेशा सड़क दुर्घटनाओं के लिए अधिकतम योगदान देती हैं। फिर भी जब तक कि अन्य सड़क सुरक्षा पहलुओं (बेहतर वाहन, बेहतर सड़कें, अग्रिम चेतावनी प्रणाली, कुशल यातायात प्रबंधन, ट्रैकिंग और मानदंडों का सख्त पालन) को लागू नहीं किया जाता है, तब तक 80% मानव त्रुटि को जिम्मेदार मानना पूरी तरह ठीक नही ।
निस्संदेह Motor vehicle एक्ट में बदलाव नागरिकों को अब ट्रैफिक नियमों का पालन करने के लिए और अधिक प्रेरणा देंगे , लेकिन सरकार को सड़क सुरक्षा के अन्य पहलुओं पर भी तुरंत निर्माण करना होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी की गई ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट ऑन रोड सेफ्टी 2015 ने कहा कि दुनिया में सड़क यातायात दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप हर साल 1.25 मिलियन से अधिक लोग मारे जाते हैं और इनमें से 2 लाख भारत के होते हैं। सेव लाइफ़ फ़ाउंडेशन विश्लेषण के अनुसार, “वर्ष 2015 में, भारत में सड़क दुर्घटनाओं में शिमला की पूरी आबादी के बराबर लोगों को खो दिया ।”
एक अन्य डेटा में कहा गया है कि 80% दुर्घटनाएं और 88% मौत ग्रामीण भारत में होती हैं। यह स्पष्ट है कि ग्रामीण सड़कों पर बड़ी संख्या में सड़क दुर्घटनाएँ और मौतें होती हैं, जिनमें अधिकांश राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग शामिल हैं जहाँ सड़क सुरक्षा को प्रमुखता प्राप्त करना बाकी है। सड़क सुरक्षा पांच स्तंभों पर टिकी हुई है; सुरक्षित सड़क (इम्प्रूव्ड लोड डिज़ाइन्स), ड्राइवर प्रशिक्षण (सड़क उपयोग व्यवहार), सुरक्षित वाहन, पोस्ट क्रैश देखभाल और सड़क सुरक्षा प्रबंधन।
भारत दुनिया का 6 वाँ सबसे बड़ा मोटर वाहन बाजार है। हमारा देश दुनिया के सबसे बड़े सड़क नेटवर्क में से एक है। लेकिन जाहिर है, 2017 की एनसीएपी क्रैश टेस्ट रेटिंग के अनुसार, हम दुनिया की कुछ सबसे असुरक्षित कारों का भी घर हैं। भारतीय सड़कों पर चलने वाले अधिकांश वाहन दुर्घटना परीक्षण की रेटिंग के अनुसार वांछित ग्रेड प्राप्त नही कर सकी, पर फिर भी सड़कों पर दौड़ रही हैं । क्योंकि हर तिमाही में कई कारें लॉन्च हो रही हैं, इसलिए उपयुक्त समय है की सरकार निर्माताओं के लिए सख्त सुरक्षा मानदंडों बनाए और उनसे इस पर अमल करवाए ।
सड़कों की बात; अनियोजित ग्रेडिएंट्स, टूटे हुए टरमैक, मलबे एक आम दृश्य हैं। सड़कों के निर्माण के दौरान, कम गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग किया जा रहा है (सिस्टम में गहराई से भ्रष्टाचार के कारण)। ध्यान से देखें तो हमारी स्थानीय सड़कें और राजमार्ग कितने साफ हैं? टायर, कुचले हुए बंपर, गद्दे, यहां तक कि कपड़े की थैलियों जैसी बेतरतीब चीजें, प्राकृतिक आपदाएँ जैसे बारिश, तूफान, भूस्खलन के कारण पेड़ सड़क पर गिरना एक आम सीन है। लेकिन इसका समाधान सड़क का तुरंत रखरखाव है जो अभी तक हमारे देश मे विषय ही नही बन पाया है।
दुनिया में सबसे सुरक्षित सड़कों के साथ, स्वीडन सड़क सुरक्षा के लिए एक समग्र दृष्टिकोण का सही उदाहरण है। 1997 में, स्वीडन ने ‘विजन जीरो’ नीति को इस विचार के आधार पर अपनाया कि “जीवन का कोई भी नुकसान स्वीकार्य नहीं था” और यह कि मानव व्यवहार को बदलने की कोशिश करने के बजाय, सड़कों और बुनियादी ढांचे, वाहन प्रौद्योगिकी और बेहतर प्रणाली को डिजाइन करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। प्रवर्तन।
2015 में, स्वीडन में सड़क दुर्घटना की मृत्यु दर 2.8 प्रति 1,00,000 थी। जब विजन जीरो लॉन्च किया गया था, तब यह आंकड़ा 7 प्रति 1,00,000 था। जबकि 2015 में, भारत के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों में 1, 46,133 लोग मारे गए थे; यह प्रति 100,000 लोगों पर 11 मौतों का अनुवाद करता है । अधिकांश सड़कों पर नियम से ड्राइविंग करने के लिए कोई खास निशानदेही नही देखी जा हैं। फिर भी ऐसी कमियों को देखने के लिए कभी कोई कठोर कदम नहीं देखा गया।
वर्तमान दुनिया में, प्रौद्योगिकी सड़क सुरक्षा के लिए बड़ा समर्थन हो सकती है। प्रत्येक वाहन पर ट्रैकिंग / आपातकालीन उपकरणों को जोड़ने से वाहनों की वास्तविक समय की निगरानी करने में मदद कर सकता है। जीपीएस ट्रैकिंग के माध्यम से ‘नो ओवरटेकिंग जोन ’, ओवर स्पीडिंग आदि जैसे मानदंडों का सख्त पालन आजकल संभव हो सकता है। एक कदम आगे चेतावनी प्रणाली भी बनाई जा सकती है और दूर से संचालित / निगरानी की जा सकती है। कुछ राष्ट्रों के पास ड्राइवरों को सचेत करने के लिए गति चेतावनी डिस्प्ले बोर्ड तक हैं। इस तरह ज़्यादा गति से चलते हुई गाड़ी का challan करना भी आसान होगा और सड़क पर वाहनों को इसलिए रोकना भी नही पड़ेगा (भारतीय एनएच पर आम दृष्टि)।
जानते हुए की सड़क सुरक्षा के यह पहलू भी बहुत ज़रूरी है सरकारें और इंजिनीयर्स इस पर कोई ज़्यादा ध्यान नही दे रहे हैं। साथ ही आम नागरिक भी इस विषय में कोई चिंता नही जाता रहे। बस सब लोग हर साल साथ मिल कर सड़क सुरक्षा साप्ताह माना लेते हैं, पर रिज़ल्ट फिर भी हर साल सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में वृधि।